कहाँ मैं और कहाँ गोशा-नशीनी का ये एलान
ये सारा सिलसिला मशहूर होने के लिए था
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इक जिस्म हैं कि सर से जुदा होने वाले हैं
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताज
हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे
इश्क़ इक मशग़ला-ए-जाँ भी तो हो सकता है
चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम
ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं
इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है
कुछ देर में ये दिल किसी गिनती में न होगा
कोई तस्वीर बना ले कि तुझे याद रहें
आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं
चराग़ उन पे जले थे बहुत हवा के ख़िलाफ़