कभी न बदले दिल-ए-बा-सफ़ा के तौर-तरीक़
अदू मिला तो उसे भी सलाम करते रहे
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गर्द की तरह सर-ए-राहगुज़र बैठे हैं
सारी दुनिया से अलग वहशत-ए-दिल है अपनी
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं
हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे
चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम
हम कि इक उम्र रहे इश्वा-ए-दुनिया के असीर
आना ज़रा तफ़रीह रहेगी
उसी ख़ातिर हटा ली है मसाइल से तवज्जोह
इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है
कुछ देर में ये दिल किसी गिनती में न होगा
ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं
पर्दा जो उठा दिया गया है