पर्दा जो उठा दिया गया है
क्या था कि छुपा दिया गया है
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कब से मैं सफ़र में हूँ मगर ये नहीं मा'लूम
कभी न बदले दिल-ए-बा-सफ़ा के तौर-तरीक़
इस इश्क़ में न पूछो हाल-ए-दिल-ए-दरीदा
सारी दुनिया से अलग वहशत-ए-दिल है अपनी
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं
इश्क़ इक मशग़ला-ए-जाँ भी तो हो सकता है
सुनता है यहाँ कौन समझता है यहाँ कौन
हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे
आसमाँ-ज़ाद ज़मीनों पे कहीं नाचते हैं
ख़ुद अपनी ज़ात से इक मुक़तदी निकालता हूँ
किसी सूरत ये नुक्ता-चीनियाँ कुछ रंग तो लाईं
गर्द की तरह सर-ए-राहगुज़र बैठे हैं