इश्क़ इक मशग़ला-ए-जाँ भी तो हो सकता है
क्या ज़रूरी है कि आज़ार किया जाए उसे
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(709) Peoples Rate This
आना ज़रा तफ़रीह रहेगी
चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम
इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है
खोलीं वो दर किसी ने भी खोला न हो जिसे
गर्द की तरह सर-ए-राहगुज़र बैठे हैं
सारी दुनिया से अलग वहशत-ए-दिल है अपनी
कभी न बदले दिल-ए-बा-सफ़ा के तौर-तरीक़
हम कि इक उम्र रहे इश्वा-ए-दुनिया के असीर
कोई तस्वीर बना ले कि तुझे याद रहें
तख़्लीक़ ख़ुद किया था कल अपने में एक घर
इस इश्क़ में न पूछो हाल-ए-दिल-ए-दरीदा
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं