यहाँ की औरतों को इल्म की परवा नहीं बे-शक
मगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं
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पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
'इशरती' घर की मोहब्बत का मज़ा भूल गए
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
मरऊब हो गए हैं विलायत से शैख़-जी
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
मदरसा अलीगढ़
मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मिरा था वो मर चुका है
जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी