छोड़ के माल-ओ-दौलत सारी दुनिया में अपनी
ख़ाली हाथ गुज़र जाते हैं कैसे कैसे लोग
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आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
दश्त-ए-अदम का सन्नाटा
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
यही सोच कर इक्तिफ़ा चार पर कर गए शैख़-जी
वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
अजल सराए तीरगी
सच्चा दिया
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था
निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख