वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
फ़िराक़ और विसाल हैं अजीब अजीब से
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जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है
हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था
हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
हर शय ब हर अंदाज़ अलग होती है
बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो
ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से
अजल सराए तीरगी
नए ख़ौफ़ का आज़ार
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा
मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से