मिलता नहीं मुझ को नक़्श अपना मुझ में
दुनिया है कि ढूँढती है दुनिया मुझ में
गम्भीर बहुत है शख़्सियत मेरी भी
दरिया मुझ में है और सहरा मुझ में
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
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Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश
सर बस्ता हयात ज़ात गुंजान मिरी
न जाने कितनी बस्तियाँ उजड़ के रह गईं
जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो
आँखों को देखने का सलीक़ा जब आ गया
ख़ालिक़ और तख़्लीक़
कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी