हिम्मत वाले पल में बदल देते हैं दुनिया को
सोचने वाला दिल तो बैठा सोचा करता है
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
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Wasi Shah
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कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था
नफ़रत की हवा बन में चलाई किस ने
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा
दुनिया कभी हो सकी न हमराज़ मिरी
सच्चा दिया
आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है
सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग
हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है
बर्बाद सुकून-दर-ओ-दीवार न हो
वो पास हो के दूर है तो दूर हो के पास
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
मुसाफ़िरत का वलवला सियाहतों का मश्ग़ला