मिरी गली के मकीं ये मिरे रफ़ीक़-ए-सफ़र
ये लोग वो हैं जो चेहरे बदलते रहते हैं
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
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क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था
दश्त-दर-दश्त अक्स-ए-दर है यहाँ
वो रतजगा था कि अफ़्सून-ए-ख़्वाब तारी था
कुछ नक़्श हुवैदा हैं ख़यालों की डगर से
मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए
हमें ख़बर है कोई हम-सफ़र न था फिर भी
वो रंग-ए-तमन्ना है कि सद-रंग हुआ हूँ
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
अपने क़दमों ही की आवाज़ से चौंका होता
मैं अपनी ज़ात की तशरीह करता फिरता था
न जाने लोग ठहरते हैं वक़्त-ए-शाम कहाँ