हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें
हमें हमारे रक़ीबों ने मो'तबर जाना
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शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा हूँ
असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना
इस राह-ए-मोहब्बत में तू साथ अगर होता
शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
हिसार-ए-मक़्तल-ए-जाँ में लहू लहू मैं था
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
अहद-ए-कम-कोशी में ये भी हौसला मैं ने किया
सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है
ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
हर दौर में रहा यही आईन-ए-मुंसिफ़ी
आइना-ख़ाना भी अंदोह-ए-तमन्ना निकला