ये कहना हार न मानी कभी अंधेरों से
बुझे चराग़ तो दिल को जला लिया कहना
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शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
मैं जब भी घर से निकलता हूँ रात को तन्हा
हद हो गई थी हम से मोहब्बत में कुफ़्र की
हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें
दर्द की इक लहर बल खाती है यूँ दिल के क़रीब
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
मा-सिवा-ए-कार-ए-आह-ओ-अश्क क्या है इश्क़ में
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की सदा हूँ
ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
बन के ताबीर भी आया होता
तमाम उम्र की दीवानगी के ब'अद खुला