विसाल-ए-यार की ख़्वाहिश में अक्सर
चराग़-ए-शाम से पहले जला हूँ
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ये कहना तुम से बिछड़ कर बिखर गया 'तिश्ना'
सफ़र में राह के आशोब से न डर जाना
मैं अपनी जंग में तन-ए-तन्हा शरीक था
शोरीदगी को हैं सभी आसूदगी नसीब
हर दौर में रहा यही आईन-ए-मुंसिफ़ी
सिवाए-दर-ब-दरी उस को ख़ाक मिलता है
वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
असीर-ए-दश्त-ए-बला का न माजरा कहना
उठते हुए तूफ़ान का मंज़र नहीं देखा
पहले निसाब-ए-अक़्ल हुआ हम से इंतिसाब
इस राह-ए-मोहब्बत में तू साथ अगर होता