इतना आसाँ नहीं पानी से शबीहें धोना
ख़ुद भी रोएगा मुसव्विर ये क़यामत कर के
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(775) Peoples Rate This
चराग़ बाँटने वालों प हैरतें न करो
फ़ाख़ताएँ बोलती हैं बाजरों के देस में
ग़ुबार-ए-शहर में उसे न ढूँड जो ख़िज़ाँ की शब
प्यासा ऊँट
बस्तियों वाले तो ख़ुद ओढ़ के पत्ते, सोए
धूप फैली तो कहा दीवार ने झुक कर मुझे
मिरे चराग़ बुझ गए
ज़र्द फूलों में बसा ख़्वाब में रहने वाला
सुर्मा हो या तारा
ग़ुंचा ग़ुंचा हँस रहा था, पती पत्ती रो गया
वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर
चाँदी वाले, शीशे वाले, आँखों वाले शहर में