'इक़बाल' ने कल अहल-ए-ख़याबाँ को सुनाया
ये शेर-ए-नशात-आवर ओ पुर-सोज़ ओ तरब-नाक
मैं सूरत-ए-गुल दस्त-ए-सबा का नहीं मुहताज
करता है मिरा जोश-ए-जुनूँ मेरी क़बा चाक
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आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
मोहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है
सर-गुज़िश्त-ए-आदम
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
तस्वीर-ए-दर्द
रह-ओ-रस्म-ए-हरम ना-मोहरिमानग
फ़ितरत मिरी मानिंद-ए-नसीम-ए-सहरी है
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़