इस राज़ को इक मर्द-ए-फ़रंगी ने किया फ़ाश
हर-चंद कि दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(6163) Peoples Rate This
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
तराना-ए-मिल्ली
ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी
तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं
तरीक़-ए-अहल-ए-दुनिया है गिला-शिकवा ज़माने का
बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
हज़रात-ए-इंसाँ
मिरी नवा से हुए ज़िंदा आरिफ़ ओ आमी