Sharab Poetry of Ameer Minai

Sharab Poetry of Ameer Minai
नामअमीर मीनाई
अंग्रेज़ी नामAmeer Minai
जन्म की तारीख1829
मौत की तिथि1900

तेरी मस्जिद में वाइज़ ख़ास हैं औक़ात रहमत के

न वाइज़ हज्व कर एक दिन दुनिया से जाना है

मस्जिद में बुलाते हैं हमें ज़ाहिद-ए-ना-फ़हम

वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब

मुझ मस्त को मय की बू बहुत है

मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता

कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था

जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं

हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का

हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी

गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़

बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रात

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