Ghazals of Ameer Minai

Ghazals of Ameer Minai
नामअमीर मीनाई
अंग्रेज़ी नामAmeer Minai
जन्म की तारीख1829
मौत की तिथि1900

या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा

वस्ल की शब भी ख़फ़ा वो बुत-ए-मग़रूर रहा

वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है

तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है

शमशीर है सिनाँ है किसे दूँ किसे न दूँ

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना

क़िबला-ए-दिल काबा-ए-जाँ और है

पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया

पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब

फूलों में अगर है बू तुम्हारी

पहले तो मुझे कहा निकालो

न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का

मुझ मस्त को मय की बू बहुत है

मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता

मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे

क्या रोके क़ज़ा के वार तावीज़

कुछ ख़ार ही नहीं मिरे दामन के यार हैं

कहा जो मैं ने कि यूसुफ़ को ये हिजाब न था

जब से बुलबुल तू ने दो तिनके लिए

जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं

हुआ जो पैवंद मैं ज़मीं का तो दिल हुआ शाद मुझ हज़ीं का

हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शमाइल ठहरा

हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़

है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब

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