Islamic Poetry of Ameer Minai

Islamic Poetry of Ameer Minai
नामअमीर मीनाई
अंग्रेज़ी नामAmeer Minai
जन्म की तारीख1829
मौत की तिथि1900

ये भी इक बात है अदावत की

तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है

किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है

ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी

काबा-ए-रुख़ की तरफ़ पढ़नी है आँखों से नमाज़

जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'

अल्लाह-री नज़ाकत-ए-जानाँ कि शेर में

अल्लाह-रे सादगी नहीं इतनी उन्हें ख़बर

वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ

तीर पर तीर लगाओ तुम्हें डर किस का है

साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना

न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का

मिरे बस में या तो या-रब वो सितम-शिआर होता

मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे

जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शमाइल ठहरा

दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़

चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह

बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रात

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