Sad Poetry of Ameer Qazalbash

Sad Poetry of Ameer Qazalbash
नामअमीर क़ज़लबाश
अंग्रेज़ी नामAmeer Qazalbash
जन्म की तारीख1943
मौत की तिथि2003
जन्म स्थानDelhi

तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो

सुना है अब भी मिरे हाथ की लकीरों में

क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी

मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ

क्या गुज़रती है मिरे बाद उस पर

होना पड़ा है ख़ूगर-ए-ग़म भी ख़ुशी की ख़ैर

ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है

उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी

उन की बे-रुख़ी में भी इल्तिफ़ात शामिल है

पाईं हर एक राह-गुज़र पर उदासियाँ

नक़्श पानी पे बना हो जैसे

नदी के पार उजाला दिखाई देता है

न पूछ मंज़र-ए-शाम-ओ-सहर पे क्या गुज़री

मेरी पहचान है क्या मेरा पता दे मुझ को

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा

लोग बनते हैं होशियार बहुत

क्या ख़रीदोगे चार आने में

ख़ौफ़ बन कर ये ख़याल आता है अक्सर मुझ को

हर रहगुज़र में काहकशाँ छोड़ जाऊँगा

हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब

हर एक हाथ में पत्थर दिखाई देता है

हाँ ये तौफ़ीक़ कभी मुझ को ख़ुदा देता था

फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है

इक परिंदा अभी उड़ान में है

दूर बैठा हुआ तन्हा सब से

दर्द का शहर कहीं कर्ब का सहरा होगा

चलो कि ख़ुद ही करें रू-नुमाइयाँ अपनी

बंद आँखों से वो मंज़र देखूँ

अपने हमराह ख़ुद चला करना

अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं

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