होते हैं काम अपने सारे ही कुछ अजब से
ये सिलसिला है जारी बालिग़ हुए हैं जब से
दो बार उन को छेड़ा हम ने बस इक सबब से
इक बार इक सबब से इक बार सबब से
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(784) Peoples Rate This
कोई ले ज़ोर की चुटकी तो है इंकार पोशीदा
लिबास-ए-नौ में रक्खी है रिआयत ऐसी टेलर ने
हया गिरती हुई दीवार थी कल शब जहाँ मैं था
इक छोड़ो हो इक और जो मिस मात करो हो
किया करते हैं दिलदारी दिल-आज़ारी नहीं करते
मुआमला-बंदी
उठ्ठे कहाँ बैठे कहाँ कब आए गए कब
कश्मकश
गोरख धंदा
सिगनल
ब-मजबूरी हर इक रंज-ओ-मेहन लिखना पड़ा मुझ को
चाँद-मारी