लिबास-ए-नौ में रक्खी है रिआयत ऐसी टेलर ने
कि इस में हेरा-फेरी जिंस की मालूम होती है
पता मुश्किल से चलता है मुज़क्कर और मोअन्नस का
कभी मालूम होता है कभी मालूम होती है
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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Friends Poetry
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हया गिरती हुई दीवार थी कल शब जहाँ मैं था
कोई ले ज़ोर की चुटकी तो है इंकार पोशीदा
सिगनल
मुआमला-बंदी
मिस्टर कॉफ़ी
चाँद-मारी
किया करते हैं दिलदारी दिल-आज़ारी नहीं करते
जब पढ़ा जौर ओ जफ़ा मैं ने तो आई ये सदा
गोरख धंदा
कश्मकश
ब-मजबूरी हर इक रंज-ओ-मेहन लिखना पड़ा मुझ को