ओस का नन्हा सा क़तरा हूँ फूलों में तुल जाऊँगा
दौलत की मीज़ान में लेकिन तोल न पाएगा कोई
शहर के हर शह-ज़ोर से कह दो पूरी कोशिश कर देखे
मेरे दस्त-ए-तलब की मुट्ठी खोल न पाएगा कोई
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सुर्ख़ सितारा
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
थी सियाहियों का मस्कन मिरी ज़िंदगी की वादी
दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए
ज़ाहिरन तोड़ लिया हम ने बुतों से रिश्ता
ये क़दम क़दम बलाएँ ये सवाद-ए-कू-ए-जानाँ
हक़ीर ख़ाक के ज़र्रे थे आसमान हुए
इश्क़ सर-ता-ब-क़दम आतिश-ए-सोज़ाँ है मगर
क्यूँ हुए क़त्ल हम पर ये इल्ज़ाम है क़त्ल जिस ने किया है वही मुद्दई
कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे
हमें आख़िरत में 'आमिर' वही उम्र काम आई