कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
वो तबस्सुम जो हक़ीक़त में फ़ुग़ाँ होता है
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1241) Peoples Rate This
दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए
हमें आख़िरत में 'आमिर' वही उम्र काम आई
सबक़ मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
आबलों का शिकवा क्या ठोकरों का ग़म कैसा
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
उलझे हुए साँसों की घुटन कैसे दिखाऊँ
क्यूँ हुए क़त्ल हम पर ये इल्ज़ाम है क़त्ल जिस ने किया है वही मुद्दई
ख़्वाब जो बिखर गए
ये क़दम क़दम बलाएँ ये सवाद-ए-कू-ए-जानाँ
मैं न कहा करता था साक़ी तिश्ना-लबों की आह न ले
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें