आबलों का शिकवा क्या ठोकरों का ग़म कैसा
आदमी मोहब्बत में सब को भूल जाता है
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कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम
इश्क़ के मराहिल में वो भी वक़्त आता है
ओस का नन्हा सा क़तरा हूँ फूलों में तुल जाऊँगा
उलझे हुए साँसों की घुटन कैसे दिखाऊँ
अगर मज़ार पे सूरज भी ला के रख दोगे
ख़्वाब जो बिखर गए
दिल पे वो वक़्त भी किस दर्जा गिराँ होता है
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
सुर्ख़ सितारा
हमें आख़िरत में 'आमिर' वही उम्र काम आई