बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम
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हक़ीर ख़ाक के ज़र्रे थे आसमान हुए
ये क़दम क़दम बलाएँ ये सवाद-ए-कू-ए-जानाँ
दिल पे वो वक़्त भी किस दर्जा गिराँ होता है
ताना-ए-इस्याँ देने वालो एक नज़र इस पर भी डालो
सबक़ मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
सहरा सहरा ग़म के बगूले बस्ती बस्ती दर्द की आग
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें
रात तो काली थी लेकिन रात गुज़र कर सुब्ह जो आई
इश्क़ सर-ता-ब-क़दम आतिश-ए-सोज़ाँ है मगर
ये पुर-फ़रेब सितारे ये बिजलियों के चराग़
मैं न कहा करता था साक़ी तिश्ना-लबों की आह न ले
क्यूँ हुए क़त्ल हम पर ये इल्ज़ाम है क़त्ल जिस ने किया है वही मुद्दई