ताना-ए-इस्याँ देने वालो एक नज़र इस पर भी डालो
मेरी तौबा के शीशे पर फ़ितरत ने ख़ुद पत्थर फेंका
बे-मौसम घिर आए बादल बिन बादल भी बरसा पानी
मैं ने जब भी तौबा कर के मीना तोड़ी साग़र फेंका
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रफ़्ता रफ़्ता सब साथी साथ छोड़ आए थे
हक़ीर ख़ाक के ज़र्रे थे आसमान हुए
आबलों का शिकवा क्या ठोकरों का ग़म कैसा
दर्द बढ़ता गया जितने दरमाँ किए प्यास बढ़ती गई जितने आँसू पिए
ये क़दम क़दम बलाएँ ये सवाद-ए-कू-ए-जानाँ
सहरा सहरा ग़म के बगूले बस्ती बस्ती दर्द की आग
इश्क़ सर-ता-ब-क़दम आतिश-ए-सोज़ाँ है मगर
दीवानों को अहल-ए-ख़िरद ने चौराहे पर सूली दी है
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें
मैं न कहा करता था साक़ी तिश्ना-लबों की आह न ले
ज़ाहिरन तोड़ लिया हम ने बुतों से रिश्ता