बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना
मुरझाए हुए फूल भी गुल-दान में रखना
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कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा
अब शहर में अक़दार-कुशी एक हुनर है
चाहे तू शौक़ से मुझे वहशत-ए-दिल शिकार कर
यही तुम पर भी खुलना है
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया
ज़मीं की गोद में इतना सुकून था 'अंजुम'
मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा
इंसान की निय्यत का भरोसा नहीं कोई
जिन को कहा न जा सका जिन को सुना नहीं गया
नख़्ल-ए-अना में ज़ोर-ए-नुमू किस ग़ज़ब का था
दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है
सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ