जिस क़दर नफ़रत बढ़ाई उतनी ही क़ुर्बत बढ़ी
अब जो महफ़िल में नहीं है वो तुम्हारे दिल में है
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(773) Peoples Rate This
वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब
लालच भरी मोहब्बत नज़रों से गिर न जाए
करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं
किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
अयाँ है बे-रुख़ी चितवन से और ग़ुस्सा निगाहों से
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया