देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत
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तल्ख़ियाँ
ग़ैरों को क्या पड़ी है कि रुस्वा करें मुझे
चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
परिंद क्यूँ मिरी शाख़ों से ख़ौफ़ खाते हैं
सुख़न-वरी का बहाना बनाता रहता हूँ
मिरी अना मिरे दुश्मन को ताज़ियाना है
पुराने घर की शिकस्ता छतों से उकता कर
हम अहल-ए-ख़ौफ़
ये लोग ख़्वाब बहुत कर्बला के देखते हैं
आते हैं बर्ग-ओ-बार दरख़्तों के जिस्म पर
हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा
मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ