कुछ वो भी तबीअत का सुखी ऐसा नहीं है
कुछ हम भी मोहब्बत में क़नाअत नहीं करते
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ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
अब यही सोचते रहते हैं बिछड़ कर तुझ से
इंतिहाई हसीन लगती है
तू मिरे पास जब नहीं होता
एक आँसू में तिरे ग़म का अहाता करते
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
तुम इंतिज़ार के लम्हे शुमार मत करना
वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है
तुम्हारे साथ मिरे मुख़्तलिफ़ मरासिम हैं
मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है
अगर चुभती हुई बातों से डरना पड़ गया तो
लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा