मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
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मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ से होता है
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
अगर चुभती हुई बातों से डरना पड़ गया तो
बनाई है तिरी तस्वीर मैं ने डरते हुए
कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है
लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा
वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है
अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे
तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम
है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है
तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो