लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा
साथ शायद उसे ले आए हवा देखते हैं
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तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो
ग़लत-रवी को तिरी मैं ग़लत समझता हूँ
एक आँसू में तिरे ग़म का अहाता करते
देर तक चंद मुख़्तसर बातें
तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा
होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
है मुस्तक़िल यही एहसास कुछ कमी सी है
हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ से होता है
दामन-ए-गुल में कहीं ख़ार छुपा देखते हैं
इंतिहाई हसीन लगती है
बना रखा है मंसूबा कई बरसों का तू ने