बना रखा है मंसूबा कई बरसों का तू ने
अगर इक दिन अचानक तुझको मरना पड़ गया तो
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सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है
सीखा न दुआओं में क़नाअत का सलीक़ा
कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम'
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं इंहिमाक में ये किस मक़ाम तक पहुँचा
इंतिहाई हसीन लगती है
बनाई है तिरी तस्वीर मैं ने डरते हुए
देर तक चंद मुख़्तसर बातें
मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है
अगर चुभती हुई बातों से डरना पड़ गया तो