नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम'
ये किस दुआ से मिरे घर में रौशनी सी है
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मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है
वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है
मुझे ख़बर ही नहीं थी कि इश्क़ का आग़ाज़
ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
वक़्त बे-वक़्त झलकता है मिरी सूरत से
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा
तू मिरे पास जब नहीं होता
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा
हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
सीखा न दुआओं में क़नाअत का सलीक़ा