तू मिरे पास जब नहीं होता
तुझ से करता हूँ किस क़दर बातें
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तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा
है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है
होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो
बनाई है तिरी तस्वीर मैं ने डरते हुए
तुम इंतिज़ार के लम्हे शुमार मत करना
एक आँसू में तिरे ग़म का अहाता करते
लोग कहते हैं कि वो शख़्स है ख़ुशबू जैसा
कुछ वो भी तबीअत का सुखी ऐसा नहीं है
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी
तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम