तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम
बात पूरी भी न होगी और घर आ जाएगा
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हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं
वक़्त बे-वक़्त झलकता है मिरी सूरत से
नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम'
हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है
कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा
मौजूद जो नहीं वही देखा बना हुआ
गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है
तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो
मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है
बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया
बनाई है तिरी तस्वीर मैं ने डरते हुए