तुम इस रस्ते में क्यूँ बारूद बोए जा रहे हो
किसी दिन इस तरफ़ से ख़ुद गुज़रना पड़ गया तो
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वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है
मैं इंहिमाक में ये किस मक़ाम तक पहुँचा
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा
एक आँसू में तिरे ग़म का अहाता करते
बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया
नहीं वो शम-ए-मोहब्बत रही तो फिर 'आसिम'
तुम्हारे साथ मिरे मुख़्तलिफ़ मरासिम हैं
मौजूद जो नहीं वही देखा बना हुआ
है मुस्तक़िल यही एहसास कुछ कमी सी है
सीखा न दुआओं में क़नाअत का सलीक़ा
होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
अब यही सोचते रहते हैं बिछड़ कर तुझ से