बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया
न अब वो मैं हूँ मिरी जाँ न अब वो तू तू है
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वक़्त बे-वक़्त झलकता है मिरी सूरत से
है नींद अभी आँख में पल भर में नहीं है
कहीं कहीं तो ज़मीं आसमाँ से ऊँची है
होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा
कुछ वो भी तबीअत का सुखी ऐसा नहीं है
मैं इंहिमाक में ये किस मक़ाम तक पहुँचा
मिरी नज़र मिरा अपना मुशाहिदा है कहाँ
एक आँसू में तिरे ग़म का अहाता करते
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं