कहीं कहीं तो ज़मीं आसमाँ से ऊँची है
ये राज़ मुझ पे खुला सीढ़ियाँ उतरते हुए
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
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Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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बनाई है तिरी तस्वीर मैं ने डरते हुए
बना रखा है मंसूबा कई बरसों का तू ने
होंटों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
ये हम-सफ़र तो सभी अजनबी से लगते हैं
अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा
देर तक चंद मुख़्तसर बातें
तू मिरे पास जब नहीं होता
तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा
मिरी नज़र मिरा अपना मुशाहिदा है कहाँ
ग़लत-रवी को तिरी मैं ग़लत समझता हूँ