तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी
है सूखने को पसीना मुआवज़ा है कहाँ
Javed Akhtar
Rahat Indori
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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बदल गया है ज़माना बदल गई दुनिया
मैं इंहिमाक में ये किस मक़ाम तक पहुँचा
माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते
तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा
हम अपने बाग़ के फूलों को नोच डालते हैं
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
ख़ुश्क रुत में इस जगह हम ने बनाया था मकान
देर तक चंद मुख़्तसर बातें
मकाँ से दूर कहीं ला-मकाँ से होता है
गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है
किसी भी काम में लगता नहीं है दिल मेरा