बड़ी चीज़ है ये सुपुर्दगी का महीन पल
न समझ सको तो मुझे गँवा के भी देखना
Rahat Indori
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(624) Peoples Rate This
हमारे मा-बैन
रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए
जब भी तन्हाई के एहसास से घबराता हूँ
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
कुछ और दिन अभी उस जा क़याम करना था
मुझ से बे-ज़ारो न यूँ संग से मारो मुझ को
कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था
हम ज़मीं की तरफ़ जब आए थे
ज़रा से रिज़्क़ में बरकत भी कितनी होती थी
वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई
आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है