ऐसे बंदों को जानता हूँ मैं
जिन का वाहिद इलाज मालिश है
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
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न ये क़ानून काम आया था राँझे के ज़रा सा भी
वो साड़ी ज्यूलरी के तहाइफ़ पे थी ब-ज़िद
वो अफ़तारी से पहले चखते चखते
कूदे हैं उस के सेहन में दो-चार शेर-दिल
कुछ इस लिए भी उसे टूट कर नहीं चाहा
कितनी मज़ाहिया है ये बोतल के जिन की बात
केबल पे एक शेल्फ़ से जल्दी में सीख कर
दस बारा ग़ज़लियात जो रखता है जेब में
मैं ने सुनाया उस को जो उर्दू में हाल-ए-दिल
वो तीस साल से है फ़क़त बीस साल की
है कामयाबी-ए-मर्दां में हाथ औरत का
मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली