मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली
किसी के साथ दिसम्बर की रात काटनी है
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थका हारा निकल कर घर से अपने
दस बारा ग़ज़लियात जो रखता है जेब में
कितनी मज़ाहिया है ये बोतल के जिन की बात
न ये क़ानून काम आया था राँझे के ज़रा सा भी
कुछ इस लिए भी उसे टूट कर नहीं चाहा
बेगम से कह रहा था ये कोई ख़ला-नवर्द
वो साड़ी ज्यूलरी के तहाइफ़ पे थी ब-ज़िद
वो अफ़तारी से पहले चखते चखते
ये दिया मैसेज ट्वीटर पर फ़सादी शख़्स ने
मोअर्रिख़ लिख न दें सुक़रात मुझ को
केबल पे एक शेल्फ़ से जल्दी में सीख कर