यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिए
अब वो नहीं रहा हूँ कोई दूसरा हूँ मैं
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ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद
आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं
दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं
अजीब हालत है जिस्म-ओ-जाँ की हज़ार पहलू बदल रहा हूँ
शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने
ज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा
ये मत कहो कि भीड़ में तन्हा खड़ा हूँ मैं
ज़िंदगी मेरी मुझे क़ैद किए देती है
तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम
आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ
घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा
सारे दुख सो जाएँगे लेकिन इक ऐसा ग़म भी है