औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल
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करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
हो गया जिस दिन से अपने दिल पर उस को इख़्तियार
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी हुआ
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र'