अज़ाँ दी काबा में नाक़ूस दैर में फूँका
कहाँ कहाँ तुझे आशिक़ तिरा पुकार आया
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ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँ
असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया
पूछा अगर किसी ने मिरा आ के हाल-ए-दिल
छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए