ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
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उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई