ख़ून हो जाएँ ख़ाक में मिल जाएँ
हज़रत-ए-दिल से कुछ बईद नहीं
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शिकवा सुन कर जो मिज़ाज-ए-बुत-ए-बद-ख़ू बदला
वो जो कर रहे हैं बजा कर रहे हैं
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
उन की हसरत भी नहीं मैं भी नहीं दिल भी नहीं
आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं
हश्र पर वा'दा-ए-दीदार है किस का तेरा
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
क्यूँ मिरा हाल क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है