सौदा वो क्या करेगा ख़रीदार देख कर
घबरा गया जो गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
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अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम
ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है
हँसी 'बिस्मिल' की हालत पर किसी को
सारी उम्मीद रही जाती है
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
अल्लाह तेरे हाथ है अब आबरू-ए-शौक़